आइये, अब यहाँ पर थोड़ा सा धर्मोपदेशक के परिपेक्ष्य में दो-चार शब्द जानकारी दिया-लिया जाय । भगवत् कृपा विशेष
और 'तत्त्वज्ञान' के प्रभाव से ऐसा कुछ
लग रहा है कि यहाँ पर आप सभी सत्यान्वेषी पाठकगण को सन्त-महात्मन्
अथवा धर्मोपदेशक के प्रकार को सर्वप्रथम जान लेना अनिवार्य होना चाहिए ताकि किसी
भी धर्मोपदेशक के प्रति अपने दिल-दिमाग में स्पष्टत: सही और समुचित अवधारणा बन सके । सही होने-रहने वाले
के प्रति कोई गलतफहमी न हो सके । सही होने-रहने वाले के प्रति
कुछ कहा जाए तो झूठ, दोष-रहित और सत्य-समुचित सहित हो ।
धर्मोपदेशकों के प्रकार
कितने
प्रकार के धर्मोपदेशक समाज में हैं-मिलते
हैं । उनमें से सच्चे धर्मोपदेशक की पहचान इसी से होगी--