संसार-शरीर से भगवद् भक्ति की ओर


आप समस्त पाठक-श्रोता बन्धुओं से मुझ सन्त ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द जी परमहंस का प्रस्तुत सद्भावी भगवदीय सन्देश के माध्यम से साग्रह अनुरोध है कि आप सब किसी भी पूर्वाग्रह-दुराग्रह से ऊपर, सर्वोच्च, सर्वश्रेष्ठ एवं सर्वोत्तम उन्मुक्त अमर जीवन पद्धति को अपना कर अपने जीवन को सार्थक एवं सफल बनावें । परमप्रभु परमेश्वर की तरफ से आप सभी के प्रति मेरी हार्दिक शुभ कामना भी है कि आपको ऐसी सद्बुद्धि प्राप्त हो जिससे कि आप उपर्युक्त जीवन पद्धति को यथाशीघ्र सहजता पूर्वक सहर्ष अपना लें--आप सभी पर ऐसी ही भगवत् कृपा हो।
किसी भी व्यक्ति को गुरु भक्ति में ऐसे नहीं चिपक जाना चाहिए कि ज्ञान और भगवान् रूप परमसत्य विधान से ही वह वंचित हो रह जाय। गुरु भक्ति बहुत-बहुत- बहुत ऊँची चीज है, इसको मैं नकार नहीं रहा हूँ, मगर यह गुरु भक्ति तभी बहुत अच्छी, बहुत ऊँची एवं सफल सार्थक है जबकि तत्त्वज्ञान रूप भगवद्ज्ञान के द्वारा भगवत् प्राप्ति हो और भगवन्मय स्थिति बनी रहे । ज्ञान और भगवान् की कीमत पर गुरु भक्ति पतन और विनाश का कारण अर्थात् पतन और विनाश को ले जाने वाली है । उत्थान परक गुरु-भक्ति तो वह है जो ज्ञान और भगवान् तथा मुक्ति और अमरता रूप अद्वैत्तत्त्व बोध प्राप्त कराने वाली हो ।
थोड़ा तो आप सोचें कि गुरु के पास आप किसलिए गए-आए थे ? क्या गुरुजी महाराज के धन-वैभव के विशाल भण्डार अर्थात् अनुयायियों के विशाल जन समूह को देखने-पाने अथवा 'हमारे गुरुजी के पास बहुत भवनयुक्त आश्रम हैं' -- आदि-आदि देखने-पाने के लिए ही गुरुजी के पास आए-गए थे ? क्या मैं इसे मान लूँ ? मुझे ऐसा विश्वास नहीं हो रहा है क्योंकि कोई भी व्यक्ति गुरु-सद्गुरु के पास ध्यान और ज्ञान के लिए आता-जाता  है । ईश्वर और परमेश्वर के लिए आता-जाता है । मुक्ति और अमरता के लिए आता-जाता है । सच्चा और सर्वोत्तम जीवन जीने हेतु निर्देश-आदेश प्राप्त करने के लिए आता-जाता है । मेरी जानकारी-समझदारी और विश्वास में तो ऐसा ही है । शेष आप सभी और भगवान् जानें ।
मैं, सन्त ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द जी परमहंस, विशुध्दत: सद्भाव एवं सत्प्रेम के साथ कहना-बताना--एक बार फिर कहना-बताना चाहता हूँ कि गुरुभक्ति बहुत -बहुत-बहुत ऊँची चीज है, मगर अज्ञान के अन्तर्गत अथवा अन्ध भक्ति के रूप में नहीं बल्कि यह तब बहुत-बहुत-बहुत ऊँची है जब ज्ञान के अन्तर्गत अर्थात् तत्त्वज्ञान रूप भगवद्ज्ञान (जिसमें 'हम'-जीव-रूह-सेल्फ है कि 'हम' आत्मा-ईश्वर-ब्रह्म-नूर-सोल- स्पिरिट-ज्योति रूप शिव है या कि 'हम' परमात्मा-परमेश्वर-खुदा-गॉड-भगवान्-तीनों में से कौन है ? यह स्पष्टत: बात-चीत सहित साक्षात् जानने-देखने को मिलता है प्राप्त कराता-होता हुआ भगवत् प्राप्ति और भगवद् भक्ति के रूप में हो--वही तत्त्वज्ञान रूप भगवद्ज्ञान रूप सत्य ज्ञान वर्तमान में पूरे भू-मण्डल पर ही एकमेव एकमात्र सन्त ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द जी परमहंस (श्री हरि द्वार आश्रम, रानीपुर मोड़ रेलवे क्रासिंग से उत्तर समीप ही श्री हरिद्वार) दे रहे हैं जिसे कोई भी भगवद् समर्पित-शरणागत भगवद् जिज्ञासु जान-देख-प्राप्त कर सकता है । जाँच-परख की खुली व पूरी छूट है मगर सद्ग्रन्थीय आधार पर ही, मनमाना नहीं। एकमेव एकमात्र भगवत् प्राप्ति और भगवद् भक्ति के रूप में हो तब यह गुरु भक्ति अनुपम और बेमिशाल होगी ।  जिसकी जानकारी-मान्यता में आत्मा ही सबकुछ है । आत्मा से नीचे जीव और ऊपर परमात्मा नाम की कोई चीज नहीं होती । आत्मा ही परमात्मा है । पुन: जीव ही आत्मा है और आत्मा ही परमात्मा है, ऐसी मान्यता वाले महात्मा ही नहीं है तो भगवदावतारी-परमात्मा के अवतार कैसे हो जायेंगें ? झूठी गुरुभक्ति अर्थात् भगवान् से  दूर हटाने-रखने और विमुख बनाने वाली गुरु भक्ति तो सदा ही पतनकारक हुआ करती है । आप स्वयं अनुभव करें और इस कथन पर भी थोड़ा गौर करें कि--
झूठा गुरु अजगर भया, लख चौरासी जाय ।
चेला सब चींटी भये, नोचि-नोचि के खाय ॥
यह कथन बिल्कुल ही सत्य और सत्य पर ही आधारित है । आप के इसे मानने या नहीं मानने का इस पर कोई दुष्प्रभाव नहीं है। हाँ, यदि आप इसे स्वीकार कर अपने असत्य-प्रधान अक्षम गुरु और अपूर्ण ज्ञान को त्याग कर सत्य-प्रधान सक्षम सद्गुरु से सत्य-प्रधान पूर्णज्ञान रूप तत्त्वज्ञान रूप भगवद्ज्ञान रूप भगवत् प्राप्ति कर्ता बनते हैं तो अपने मानव जीवन के माध्यम से जीव के उद्धार के प्राप्ति कर्ता बनेंगे, और आप यदि भगवद् विमुख अथवा भगवत् प्राप्ति से वंचित बनाने और बनाए रखने वाले गुरु के प्रति यानी मात्र शरीर और आत्मा वाले गुरुजनों की भक्ति मात्र में सटे-चिपके रहे तब तो पतन और विनाश से कोई भी बचा नहीं सकता; यह निश्चित ही है कि कोई भी बचा नहीं सकता |  

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